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कभी हवा का रुख बताने वाली 2 हजार साल पुरानी पतंग जीवन के कई सबक सिखाती है

लाइफस्टाइल डेस्क. कागज का एक छोटा टुकड़ा जब किसी डोर से बंध जाता है और हवा का एक झोंका पाकर इठलाने लगता है तो बन जाती है पतंग। इंसान ने परिंदों को हवा में गोते लगाते देखा तो सोचा कि क्यों न मैं भी कुछ ऐसा करूं। बस, यहीं से उपजी पतंग की सोच, जो कालांतर में मनोरंजन, कला और संस्कृति का हिस्सा बन गई। इतिहास, धर्म और सभ्यता के साथ रूप बदलती पतंग और पतंगबाजी को पर्यटन से भी जोड़ दिया गया है। मकर संक्रांति के मौके पर याद किए जाने वाले सूर्य और पतंग दोनों ही प्रेरणा के स्रोत भी हैं। आइए, समझते हैं कि पतंग के अलग-अलग पक्ष और पहलू क्या हैं...

विज्ञान : आसमान में कैसे उड़ती है पतंग?

  • एक साधारण पतंग को उड़ने के लिए सबसे बेहतर समय तब होता है, जब कम से कम 6 किलोमीटर और अधिकतम 20 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवा चल रही हो। हवा की गति 6 किमी से कम होने पर उड़ने में दिक्कत आती है और अधिक होने पर पतंग से नियंत्रण खोने लगता है।
  • जिस तरह हवाई जहाज के उड़ने का संबंध हवा से है ठीक वैसा पतंग के साथ भी है। पतंग की हवा में उड़ने की क्षमता उसकी बनावट और उससे बंधी कन्नी की स्थिति पर निर्भर करती है।
  • आमतौर पर उड़ाई जाने वाली साधारण आकार की पतंग तब उड़ती है, जब उसकी निचली सतह की ओर से हवा का दबाव पड़ता है। कन्नी की ऊपर वाली डोरी पतंग को हवा में खींचती है,जिससे पतंग को ऊंचा उड़ाने के लिए इसके नीचे वाले हिस्से में हवा के सापेक्ष एक कोण बन जाता है।
  • हवा की गति को जानने के लिए इन दिनों कई तरह की डिवाइस मौजूद हैं। पहले पत्तियों या झंडे के मूवमेंट देखकर हवा की गति का पता लगाया जाता था।

इतिहास : बांस के कागज से हुआ था पतंग का आविष्कार

  • पतंग का इतिहास लगभग 2000 साल से भी अधिक पुराना है। आविष्कार को लेकर मान्यताएं भी अलग-अलग हैं। माना जाता है कि सबसे पहले पतंग का आविष्कार चीन के शानडोंग में हुआ। इसे पतंग का घर के नाम से भी जाना जाता है।
  • एक कहानी के मुताबिक, एक चीनी किसान अपनी टोपी को हवा में उड़ने से बचाने के लिए उसे एक रस्सी से बांध कर रखता था, इसी सोच के साथ पतंग की शुरूआत हुई।
  • मान्यता ये भी है कि 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में चीन दार्शनिक मोझी और लू बान ने बांस के कागज से पतंग का आविष्कार किया था।
  • 549 एडी से कागज की पतंगों को उड़ाया जाने लगा था, क्योंकि उस समय पतंगों को संदेश भेजने के रूप में इस्तेमाल किया गया था। ज्यादातर लोगों का मानना है कि चीनी यात्री हीएन और हुइन सैंग पतंग को भारत में लाए थे। वायुमंडल में हवा के तापमान, दबाव, आर्द्रता, वेग और दिशा के अध्ययन के लिए पहले पतंग का ही प्रयोग किया जाता था।1898 से 1933 तक संयुक्त राज्य मौसम ब्यूरो ने मौसम के अध्ययन के लिए पतंग केंद्र बनाए हुए थे,जहां से मौसम नापने की युक्तियों से लैस बॉक्स पतंगें उड़ा कर मौसम सम्बंधी अध्ययन किए जाते थे।

अर्थशास्त्र : भारत 1200 करोड़ रुपए का पतंग बाजार

  • एसोचैम के मुताबिक, भारत में पतंग का बाजार 1200 करोड़ रुपए का है। देशभर में 70 हजार से ज्यादा कारीगर पतंग बाजार से जुड़े हैं।
  • मार्केट में एक पतंग की कीमत 2 से 150 रुपए तक होती है, लेकिन काइट फेस्टिवल्स मेंं उड़ाई जाने वाली पतंग महंगी होती हैं। यह उसके आकार, बनावट और मैटेरियल पर निर्भर करती है।
  • पतंग कारोबार के लिए उत्तर प्रदेश के कई जिले मशहूर हैं। बरेली, अलीगढ़, रामपुर, मुरादाबाद और लखनऊ में तैयार होने वाला मांझा और पतंग राजस्थान समेत कई राज्यों में भी सप्लाई किया जाता है। एक बड़े आकार की चरखी में मांझे की छह रील भरी जा सकती है। एक रील में 900 मीटर लंबा मांझा होता है। एक औसत क्वालिटी वाली छह रील वाली चरखी लेंगे तो 400-600 रुपए का खर्चा आता है।

कला : समझें कन्ने बांधने और पेच लड़ाने का कॉन्सेप्ट

  • पतंग की उड़ान कन्ने बांधने की कला पर निर्भर है। इसमें कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है, जैसे हवा बेहद कम या सामान्य है, तो कन्ना थोड़ा छोटा रखना ही बेहतर है। हवा की गति तेज है तो आगे और पीछे दोनों तरफ कन्ने को बराबर रखें।
  • पतंग के कन्ने बांधने के लिए मांझे का प्रयोग न करें। इसके लिए सद्दी बेहतर है, क्योंकि इसके टूटने का खतरा बेहद कम रहता है।
  • पेंच दो तरह से लड़ाए जाते हैं डोर खींचकर या ढील देकर। डोर खींचकर पेच लड़ाना चाहते हैं तो आपकी पतंग विरोधी पतंग से नीचे होनी चाहिए।
  • अगर ढील देकर पेच लड़ाना चाहते हैं तो ध्यान रखें कि डोर को धीरे-धीरे छोड़ें। इस दौरान पतंग को गोल-गोल घुमाते रहेंगे तो जीतने की संभावना रहेगी। पेच लड़ाते समय मांझा टकराएं।

भूगोल : देश-दुनिया में पतंग को समर्पित फेस्टिवल्स

  • ऑस्ट्रेलिया का सबसे बड़ा पतंगोत्सव फेस्टिवल ऑफ विंड्स के नाम से सिडनी में हर साल सितंबर में सेलिब्रेट किया जाता है।
  • चीन के वेईफांग शहर में हर साल अप्रैल में काइट फेस्टिवल आयोजित होता है। यहां मान्यता है कि ऊंची पतंग को देखने से नजर अच्छी रहती है।
  • जापान में हर साल मई के पहले सप्ताह में हमामात्सु के शिजुका प्रान्त में पतंगोत्सव होता है। यहां मानते हैं कि पतंग उड़ाने से देवता प्रसन्न होते हैं।
  • भारत में खासतौर मकर संक्रांति के मौके पर पतंग उड़ाने का रिवाज है। जनवरी के पहले सप्ताह में अहमदाबाद और जयपुर में भारत के सबसे बड़े काइट फेस्टिवल आयोजित किए जाते हैं।
  • ब्रिटेन में हर साल अगस्त के दूसरे सप्ताह में पोर्ट्समाउथ इंटरनेशनल काइट फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है। यहां डिजाइनर से लेकर 3डी पतंगों के लिए लोग जुटते हैं।
  • हर साल 1 नवंबर को ग्वाटेमाला में काइट्स ऑफ सुपेंगो के नाम से पतंग उत्सव मनाया जाता है। जिसमें 15-20 मीटर चौड़ी पतंगे उड़ाई जाती हैं।
  • इंडोनेशिया के बाली काइट फेस्टिवल में 4-10 मीटर चौड़ी और 100 मीटर की पूंछ वाली पतंगे उड़ाई जाती हैं। यह अक्टूबर के तीसरे हफ्ते में सेलिब्रेट किया जाता है।
  • साउथ अफ्रीका के केपटाउन में जनवरी के दूसरे हफ्ते में इंटरनेशनल काइट फेस्टिवल सेलिब्रेट किया जाता है।
  • अमेरिका में द जिल्कर काइट फेस्टिवल सेलिब्रेट किया जाता है। हर मार्च में यहां म्यूजिक कॉन्सर्ट से लेकर हर उम्र वर्ग के लिए प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।
  • इटली में सर्विया इंटरनेशनल काइट फेस्टिवल हर साल अप्रैल में मनाया जाता है।

गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड जो पतंग के नाम बने

  • ऑस्ट्रेलिया के रॉबर्ट मूरे ने 2014 में दुनिया में सबसे ऊंची पतंग (चार हजार नौ सौ मीटर ) उड़ाने का रिकॉर्ड बनाया था।
  • 2005 में कुवैत के एक काइट फेस्टिवल में अब्दुल रहमान और फारिस ने दुनिया की सबसे बड़ी पतंग उड़ाई। यह 25 मीटर लंबी और 40 मीटर चौड़ी थी।
  • 2006 में एक डोर से 43 पतंगों का उड़ाने का रिकॉर्ड चीन के मा क्विंगहुआसेट के नाम है।
  • पुर्तगाल के फ्रेसिस्को लुफिन्हा के पास यात्रा करते हुए सबसे लंबी काइटसर्फिंग यात्रा (862 किमी) करने का रिकॉर्ड है।
  • 2011 में यूनाइटेड नेशनल रिलीफ एंड वर्क एजेंसी ऑर्गेनाइजेशन ने फिलीस्तीन बच्चों के लिए गाजा स्ट्रिप के समुद्रतट पर 12,350 पतंगें उड़ाकर रिकॉर्ड बनाया।


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